शब्दकोशः / संस्कृतहिन्दीआंग्लकोशः / पुद्गलजीववाद
विवरणम् : जैनियों का यह मत कि न केवल प्राणी और वनस्पति अपितु पृथ्वी‚ अग्नि‚ जल एवं वायु और इन भूतों के छोटे से छोटे कण भी सजीव हैं; पुद्गल वर्ण‚ रस‚ गन्ध और स्पर्श से युक्त होता है । यह नित्य है और अणुमय है । इसके अणुओं से अनुभव की सब वस्तुएँ बनी हैं‚ जिनमें प्राणियों के शरीर‚ ज्ञानेनन्द्रियाँ और मनस् भी हैं । सूक्ष्म अवस्था में रहने वाला पुद्गल ही कर्म है जो जीव के अन्दर प्रविष्ट होकर संसार का कारण बनता है ।
शब्दभेदः : पुं.
वर्गः :
दृश्यम् : 169
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